Last updated on July 8, 2024
सिया के राम
बाग में मिले मुझे, मुलाकात अब भी ध्यान है।
चाह मन में है जगी, भाव दोनो के समान है।।१
शब्द में कहा नही, प्रेम इसका नाम है।
बात मन में है यही, मेरे सर्वस्व राम है।।२
साँस है थमी थमी, मन में उनका नाम है।
मिलने से जो रोक रही, वो तो बस पिनाक है।।३
मैंने तो पति चुना है, बात एक आम है।
मर्यादा से ना हटे जो, आप के वो राम है।।४
एक वचन के लिए, एक वचन तोड़ के।
राम वन को चलने लगे, बाकी सब छोड़ के।।५
स्वामी भक्ति के लिए, साथ भी मिले सदा।
मैं भी चलने लगी, एक वचन ओढ़ के।।६
स्वप्न सारे बह गए, सरयू के प्रवाह में।
हाथ प्रभु का फिर भी रहा, मेरे इस हाथ में।।७
मैंने तो पति चुना है, बात एक आम है।
मर्यादा से ना हटे जो, आप के वो राम है।।८
एक मान के लिए, एक सम्मान है।
छल से उसने हर लिया, धेय सिर्फ राम है।।९
वियोग सह रहे थे वो, संसार सब साथ है।
पीड़ा तो यहाँ भी बहुत, पर न कोई पास है।।१०
दूरियाँ बहुत है तो, भय भी अपार है।
विश्वास फिर भी है मगर, बचाव सिर्फ राम है।।११
मैंने तो पति चुना है, बात एक आम है।
मर्यादा से ना हटे जो, आप के वो राम है।।१२
कैद में रही थी मैं, पर राम तो महान है।
विश्वास मन में था भरा, संदेह अब बलवान है।।१३
राम तो मिले मगर, अग्नि द्वारपाल है।
अश्रु अब सूख गए, मन में सिर्फ आग है।।१४
परीक्षा देने पर भी जब उसने मेरा त्याग किया।
पीड़ा सहन ना हुई तो माँ ने मुझ को थाम लिया।।१५
मैंने तो पति चुना था, बात एक आम थी।
मर्यादा बनी रही, सीता अब निशान थी।।१६
Be First to Comment